ग्रहों की अवस्था. Graho Ki Avastha



ग्रहों की बालादि अवस्था


वैदिक ज्योतिष में ग्रहो की कई प्रकार की अवस्थाओं का वर्णन मिलता है. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई तरह के बलों पर आधारित होती हैं. इन्हीं अवस्थाओं में से ग्रहों की एक अवस्था बालादि अवस्थाएँ होती हैं. जिनमें ग्रहों को उनके अंशों के आधार पर बल मिलता है.
बालादि अवस्था में सम राशि में स्थित ग्रह का बल तथा विषम राशि मे स्थित ग्रह का बल अलग होता है. इन बलों के अनुसार ही जातक अपने जीवन में ग्रहो के फलो को भोगता है. बालादि अवस्था में ग्रहो के बल उनके अंश तथा राशि पर आधारित होते है. राशि का महत्व इसलिए है क्योंकि सम राशि में स्थित ग्रह का फल विषम राशि में स्थित ग्रह से एकदम अलग हो सकता है.


विषम राशि सम राशि
1. मेष 2. वृषभ
3. मिथून 4. कर्क
5. सिंह 6. कन्या
7. तुला 8. वृश्चिक
9. धनु 10. मकर
11. कुम्भ 12. मीन


जिस प्रकार इस जगत में मनुष्यों की बाल, कुमार, युवा एवं वृद्ध अवस्थाएं होती हैं, ठीक उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की भी बाल, कुमार, युवा एवं वृद्ध अवस्थाएं होती हैं। ग्रहों की ये अवस्थाएं जातक के जन्मांग फलित ठीक उसी प्रकार प्रभावित करती हैं, जैसे मानव की अवस्थाएं उसके जीवन को।
मनुष्य अपनी कुमार व युवावस्था में बलवान व सशक्त होता है। ग्रह भी अपनी अपनी कुमार व युवावस्था में बलवान व सशक्त होता है। अब यदि जन्मांग चक्र में शुभ ग्रह बलवान हुआ तो वह जातक अत्यंत शुभ फल प्रदान करेगा और यदि शुभ ग्रह अशक्त व निर्बल हुआ तो वह जातक शुभ फल प्रदान करने में असमर्थ रहेगा। अत: जातक की कुंडली में शुभ ग्रहों का ग्रहावस्था अनुसार बलवान व सशक्त होना अतिआवश्यक होता है।
मनुष्यों की विविध अवस्थाएं उसकी आयु के अनुसार तय होती हैं जबकि ग्रहों की उनके अंशों के अनुसार। ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक ग्रह 30 अंश का माना गया है।


ग्रहों की अवस्था मृत वृद्धयुवाकुमारबाल
विषम राशि 25°- 30° 19°- 24°13°- 18°7°- 12°0°- 6°
सम - राशि 0°- 6° 7°- 12°13°- 18°19°- 24°25°- 30°

युवा अवस्था का ग्रह पूर्ण फल देता है, वृद्धा अवस्था का ग्रह अल्प फल देता है और मृत अवस्था का ग्रह फल देने में असक्षम होता है।

ग्रहों की बलाबल अवस्था


मित्रों फलित ज्योतिष में जातक के फलादेश में और अधिक स्पष्ठता और सूक्ष्मता लाने हेतु ग्रहों के बलाबल और अवस्था का ज्ञान होना परम् आवश्यक है। ग्रहों के बलाबल 6 प्रकार के होते है जो इस प्रकार है :-


स्थान बल जो ग्रह उंच राशिस्थ सवगरहि मित्र राशिस्थ मूलत्रिकोण राशिस्थ सवद्रेष्कनस्थ आदि सववर्गों में सिथत हो , इसके अतिरिक्त अष्टक वर्ग में 4 से अधिक रेखाएं प्राप्त हो तो वो स्थानब्ली कहलाता है। इसके अतिरिक्त एक अन्य मान्यता के अनुसार स्त्री ग्रह स्त्री राशि में और पुरुष ग्रह पुरुष राशि में बलि माने जाते है।
दिक् बल बुद्ध गुरु लग्न में चन्द्र शुक्र चोथे भाव में शनि सप्तम भाव में और सूर्य मंगल दसम भाव में दिक् बलि माने जात है।
काल बल चंद्र मंगल शनि राहु रात्रि में और सूर्य गुरु दिन में बलि होते है । शुक्र मध्यान्ह में और बुद्ध दिन रात दोनों में बलि होता है।
नैसर्गिक बल शनि से मंगल ,मंगल से बुद्ध ,बुद्ध से गुरु, गुरु से शुक्र ,शुक्र से चन्द्र, चन्द्र से सूर्य क्रमानुसार ये ग्रह उत्तरोत्तर बलि माने जाते है।
चेष्ठा बल सूर्य चंद्रादि ग्रहों की गति के कारण जो बल ग्रहों को मिलता है उसे चेष्ठा बल कहते है। सूर्य से चन्द्र उतरायनगत राशियों (मकर से मिथुन राशि पर्यन्त) में हो तो चेष्ठा बलि होते है । तथा क्रूर ग्रह सूर्य द्वारा दक्षिणायन गत ( कर्क से धनु राशि पर्यन्त ) राशियों में बलि माने जाते है। मतांतर से कुंडली में चन्द्र के साथ मंगल बुद्ध गुरु शुक्र शनि हो तो कुछ ब्लॉन्तित हो जाते है। कुछ विद्वान चेष्ठा बल को अयन बल भी कहते है। इसी प्रकार शुभ ग्रह वक्री हो तो राशि सबंधी सुखो में विर्धि करते है और पाप ग्रह वक्री हो तो दुःखो में विर्धि करते है।
दृक् बलजिस ग्रह पर शुभ ग्रहों की दृष्टी पड़ती हो उसे दृक बलि कहते है। बुद्ध गुरु शुक्र और बलि चन्द्र यानी पूर्णमाशी के आसपास का चन्द्र शुभ ग्रह कहलाते है मंगल सूर्य क्रूर और राहु केतु शनि पापी ग्रह कहलाते है। इन सबके साथ ग्रहों की अस्ठ्कवर्ग में सिथ्ती , उनका ईस्ट फल कष्ट फल , वो किसी नक्षत्र में है और उसका नक्षत्र स्वामी और उस राशि का स्वामी कन्हा सिथत है, ग्रह का उनसे कैसा मैत्री सम्बन्ध सम्बन्ध है आदि का अध्ययन करने के बाद ही फलित के अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है

ग्रहों की दीप्तादी अवस्था


जब ग्रह अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि और स्वराशि में होते हैं तो राशियों की स्थिति के अनुकूल फल देते हैं और इन्हें ही दीप्तादि अवस्था कहते है

दीप्त जब कोई ग्रह कुंडली मे उच्च का हो या अपनी उच्च राशि मे स्थित हो अथवा उच्च के अंश में स्थित होतो वह उसकी दीप्त अवस्था होती है। इस अवस्था मे ग्रह अपने पूर्ण प्रकाश युक्त होता है। दीप्त अवस्था मे स्थित ग्रह की दशा आने पर वह ग्रह अपार सम्पदा प्रदान करता है।
-: दीप्त अवस्था का प्रभाव :-
इस अवस्था से साहस, वैभव, धन, संपत्ति, भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति, दीर्घकालिक खुशी, राजकीय मां सम्मान, राज कृपा प्राप्त होती है। व्यक्ति शक्तिशाली, गुणवान व पुरुषार्थी होता है
स्वस्थ जब भी ग्रह कुण्डली में अपनी मूलत्रिकोण राशि में या स्वराशि में होता है तब वह स्वस्थ अवस्था में होता है. इसमें वह अच्छे फल देता है. व्यक्ति समाजिक यश प्राप्त करता है और हर क्षेत्र में उसे सफलता मिलती है. वह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है और यश, सम्पदा, सम्मान प्राप्त करता है।
-: स्वस्थ अवस्था प्रभाव :-
इस अवस्था में ग्रह अपने ही घर में माना जाता है. इस अवस्था में ग्रह अपने सारे फल देने में सक्षम होता है. ग्रह जिस भाव में स्थित होता है और जिन भावों का स्वामी होता है उनसे संबंधित सभी अशुभ व शुभ फल प्रदान करता है. जातक को धन, वाहन, भवन, आभूषण सभी कुछ प्राप्त होता है. भौतिक सुख, विलास पूर्ण वस्तुएं, आभूषण, अच्छा स्वास्थ्य, आराम-परस्त जीवन, भूमि सुख, दांपत्य सुख, संतान, धार्मिक विचारों से परिपूर्ण, पद्दोन्नति आदि मिलती है।
मुदित जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि अपनी मित्र की राशि में स्थित होता है तब वह उस ग्रह की मुदित अवस्था होती है. जिस प्रकार व्यक्ति अपने अच्छे मित्रों के साथ खुश रहता है ठीक उसी प्रकार ग्रह भी अपनी मित्र राशि में मुदित अर्थात प्रसन्न रहते हैं. मुदित अवस्था के प्रभाव से व्यक्ति धन-सम्पत्ति व धार्मिक कार्यो में रुचि दर्शाता है. जातक किसी की सहायता से भी कार्य कर सकता है. इस अवस्था में स्थित ग्रह की दशा होने पर जातक जीवन में सफलता प्राप्त करता है तथा जीवन में नई ऊचाईयों को छूता है।
-: मुदित अवस्था प्रभाव :-
कुण्डली में यदि ग्रह अपनी मुदित अवस्था में स्थित है तब व्यक्ति को आर्थिक लाभ और धन प्राप्ति होती है. व्यक्ति सभ्य व्यवहार करने वाला होता है और उसे मानसिक संतोष की प्राप्ति होती है. उसे आभूषण, वस्त्र, वाहन का सुख मिलता है. धार्मिक प्रवृति जागृत होती है और मित्र के व्यवहार द्वारा अच्छे गुणों की प्राप्ति होती है।
शांतकोई ग्रह कुण्डली में शुभ ग्रह की राशि में हो और वर्गो (सप्तमांश् नवांश, दशमाशं इत्यादि ) में अपने शुभ वर्गों में होता है तो वह उसकी शान्त अवस्था होती है. जातक धैर्यवान व शान्त प्रकृति का होता है. वह शास्त्रों का ज्ञाता होता है और दानी होता है. व्यक्ति बहुत से मित्रों से परिपूर्ण हो सकता है. व्यक्ति सरकारी अधिकारी होकर किसी उच्च पद पर आसीन हो सकता है।
-: शान्त अवस्था प्रभाव :-
इस अवस्था के प्रभाव के परिणामस्वरुप व्यक्ति को मान सम्मान की प्राप्ति होती है, उसे जीवन में खुशी मिलती है. व्यक्ति को अपने कामों के लिए प्रसिद्धि मिलती है, उसके पुरुषार्थ में वृद्धि होती है, कार्यों को संपन्न करने की दक्षता होती है. व्यक्ति को अचानक से मिलने वाले परिणाम प्राप्त होते हैं. उतार- चढाव से भरी जिंदगी भी हो सकती है. लेकिन बहुत बुरे परिणाम नहीं मिलते हैं।
शक्तकुण्ड्ली में जब कोई ग्रह उदित अवस्था अर्थात ग्रह के अस्त होने से पहले की अवस्था में होता है तब यह ग्रह की शक्त अवस्था होती है. इस अवस्था में ग्रह इतना शक्तिशाली नहीं होता और पूर्ण फल देने में समर्थ नही होता है परन्तु वह अपने कार्य में सक्षम, शत्रु का नाश करने वाला, शौकीन मिजाज़ होता है. इस अवस्था में स्थित ग्रह की दशा होने पर जातक जीवन में कठिनाईयो के साथ सफलता प्राप्त करता है।
-: शक्त अवस्था प्रभाव :-
इस अवस्था के प्रभाव के परिणामस्वरुप व्यक्ति को मान सम्मान की प्राप्ति होती है, उसे जीवन में खुशी मिलती है. व्यक्ति को अपने कामों के लिए प्रसिद्धि मिलती है, उसके पुरुषार्थ में वृद्धि होती है, कार्यों को संपन्न करने की दक्षता होती है. व्यक्ति को अचानक से मिलने वाले परिणाम प्राप्त होते हैं. उतार- चढाव से भरी जिंदगी भी हो सकती है. लेकिन बहुत बुरे परिणाम नहीं मिलते हैं।
पीड़ितव्यक्ति को जीवन में धन हानि हो सकती है. जीवन साथी एवं बच्चों से अनबन और कलह की स्थिति उत्पन्न हो साक्ती है व्यक्ति रोग एवं व्याधि से प्रभावित हो सकता है, विशेषकर नेत्र संबंधी रोग परेशानी दे सकते हैं. व्यक्ति की किसी कारण से बदनामी हो सकती है अथवा वह पाप पूर्ण या अनैतिक कामों में लिप्त हो सकता है. व्यक्ति को अपने द्वारा किए प्रयासों में विफलता मिलती है और वह बुरी लत से प्रभावित हो सकता है।
-: पीड़ित अवस्था प्रभाव :-
व्यक्ति को जीवन में धन हानि हो सकती है. जीवन साथी एवं बच्चों से अनबन और कलह की स्थिति उत्पन्न हो साक्ती है व्यक्ति रोग एवं व्याधि से प्रभावित हो सकता है, विशेषकर नेत्र संबंधी रोग परेशानी दे सकते हैं. व्यक्ति की किसी कारण से बदनामी हो सकती है अथवा वह पाप पूर्ण या अनैतिक कामों में लिप्त हो सकता है. व्यक्ति को अपने द्वारा किए प्रयासों में विफलता मिलती है और वह बुरी लत से प्रभावित हो सकता है।
दीनजब भी ग्रह कुण्डली में अपनी नीच राशि में होता है वह उसकी दीन अवस्था होती है. यहाँ ग्रह अपनी सारी शक्ति खो चुका होता है. व्यक्ति को अपने जीवन काल में संघर्षो से गुजरना पडता है. जीवन में निर्धनता का सामना करना पडता है. व्यक्ति सरकारी अधिकारियों से दुखी, भयभीत, अपने लोगो से शत्रुता, कानून व सामाजिक नियमों की अवहेलना करने वाला होता है।
-: दीन अवस्था प्रभाव :-
ग्रह की इस अवस्था में व्यक्ति के बनते हुए काम बिगड़ जाते हैं. व्यक्ति कुछ ज्यादा ही व्यावहारिक हो जाता है. हर परिस्थिति से डरने वाला, शोक संताप से पीड़ित, शारीरिक क्षमता में गिरावट का अनुभव होता है. संबंधियों से विरोध का सामना करना पड़ सकता है और घर परिवर्तन की स्थिति उत्पन्न होने की नौबत तक आ सकती है. व्यक्ति बिमारियों से ग्रस्त होता है एवं लोगों द्वारा तिरस्कृति भी हो सकता है
खलजब भी कुण्डली के किसी भी भाव या राशि में दो ग्रह या दो से अधिक ग्रह आपस में 1 अंश के अन्तर में हों तो यह गृह युद्ध की स्थिति होती है. इसमे से अधिक अंशो वाला ग्रह युद्ध में परास्त होता है. परास्त ग्रह खल अवस्था में माना जाता है वह जातक को निर्धन बनाता है और जातक क्रोधी स्वभाव वाला होता है. जातक दूसरों के धन पर बुरी दृष्टि रखने वाला होता है
-: खल अवस्था प्रभाव :-
ग्रह की इस अवस्था के प्रभाव से व्यक्ति के अंदर शत्रुता की भावना पनपती है. वह अपने ही लोगों द्वारा प्रताड़ित होता है. स्वभाव से झगडालू हो सकता है. अपने पिता से व्यक्ति की अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. धन- संपत्ति एवं जायदाद की हानि हो सकती है. व्यक्ति गलत कार्यों द्वारा धन एकत्रित करना चाहेगा तथा अपना हित करने वाला व स्वार्थी प्रवृत्ति का हो सकता है।
भीतजन्म कुण्डली में जब कोई ग्रह शत्रु ग्रह के क्षेत्र में हो अथवा शत्रु ग्रह की राशि में बैठा हो तो वह दुखी अवस्था में होता है. जिस तरह से यदि कभी किसी व्यक्ति को अपने शत्रु के घर में जाना पड़े तो वह वहाँ जाकर परेशानी का अनुभव करता है. इसी तरह से ग्रह भी शत्रु के घर में परेशान होता है. ग्रह की इस अवस्था के कारण व्यक्ति को अनेक कष्ट मिलते हैं. उसे परिस्थतियों के कारण कष्ट की अनुभूति होती है
-: दुखी अवस्था प्रभाव :-
ग्रह की इस अवस्था के कारण व्यक्ति का स्थान परिवर्तन होता है. अपने प्रिय जनों से अलग रहने की स्थिति पैदा हो सकती है. आग लगने का भय तथा चोरी का होने का भय व्यक्ति को सताता है. व्यक्ति के साथ सदा असमंजस की स्थिति बनी रहती है।
विकलजब भी कुण्डली के किसी भी भाव या राशि में ग्रह पाप (अशुभ) ग्रहों के साथ होता है तब वह ग्रह की विकल अवस्था होती है. जिस तरह से एक साधारण व्यक्ति यदि किसी ताकतवर या पाप कर्म करने वाले व्यक्ति के साथ बैठ जाता है तब वह स्वयं को बेचैन महसूस करता है. इसी तरह ग्रह भी पाप ग्रहों के साथ बेचैनी महसूस करते हैं और यही अवस्था ग्रह की विकल अवस्था होती है. ग्रह अपने फलानुसार फल नही दे पाता और वह साथ बैठे ग्रहों के अनुरुप फल देता है. इसके फल स्वरुप जातक नीच प्रकृति वाला होता है. जातक शक्तिहीन होकर दूसरों का सेवक होता है और बुरी संगति का संग करने वाला होता है।
-: विकल अवस्था प्रभाव :-
ग्रह की विकल अवस्था के परिणामस्वरुप व्यक्ति शक्तिहीन तथा बलहीन होता है. व्यक्ति की आत्म-सम्मान की हानि भी हो सकती है. मित्रों एवं सगे संबंधियों से अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. आत्मिक दुख, मानसिक प्रताड़ना, जीवन साथी तथा बच्चों से हानि एवं कष्ट की स्थिति पैदा हो सकती है. व्यक्ति को चोरों द्वारा हानि भी हो सकती है. उसके स्तरहीन लोगों से संबंध बनते हैं

ग्रहों की लज्जित अवस्था

क्षेत्र, युति तथा दृष्टि


जब भी कोई ग्रह कुण्डली में पंचम भाव में अशुभ ग्रहों से युक्त हो तो यह ग्रह की लज्जित अवस्था होती है.
इस अवस्था में ग्रह अनुकूल फल देने में कुछ अक्षम होता है. पंचम भाव के फलों में भी कमी हो सकती है.

ग्रहों की लज्जितादि 6 अवस्थाएं हैं


1. लज्जित जो ग्रह पंचम भाव में राहु केतु सूर्य शनि या मंगल से युक्त हो वह लज्जित कहलाता है जिसके प्रभाव स पुत्र सुख में कमी और व्यर्थ की यात्रा और धन का नाश होता है।
2. गर्वित जो ग्रह उच्च स्थान या अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है गर्वित कहलाता है। ऐसा ग्रह उत्तम फल प्रदान करता और सुख सौभाग्य में वृद्धि करता है है ।
3. क्षुधित शत्रु के घर में या शत्रु से युक्त क्षुधित कहलाता है अशुभ फलदायी कहलाता है।
4. तृषित जो ग्रह जल राशि में सिथत होकर केवल शत्रु या पाप ग्रह से द्रिस्ट हो तृषित कहलाता है। इस से कुकर्म में बढ़ोतरी बंधू विवाद दुर्बलता दुस्ट द्वारा क्लेश परिवार में चिन्ता धन हानि स्त्रियों को रोग आदि अशुभ फल मिलते है।
5. मुदित जो ग्रह मित्र के घर मे मित्र ग्रह युक्त या दृष्ट हो मुदित कहलाता है।
6. छोभित सूर्य के साथ स्थित होकर केवल पाप ग्रह से दृष्ट होने पर ग्रह छोभित कहलाता है।

जिन जिन भावों में तृषित क्षुधित या छोभित ग्रह होते है उस भाव के सुख की हानि करते है।

ग्रहों की चैतन्यता के आधार पर अवस्थाएं

यह तीन अवस्था होती है :-

  1. जागृत अवस्था
  2. स्वप्न अवस्था
  3. सुषुप्ति अवस्था

  • विषम राशि मे 10° तक जागृत अवस्था 10°- 20° तक स्वप्न अवस्था और 20°- 30° तक सुषुप्ति अवस्था होती है
  • सम राशि मे 10° तक सुषुप्ति अवस्था 10°- 20° तक स्वप्न अवस्था और 20°- 30° तक जागृत अवस्था होती है।


  • ग्रहों की अवस्था 0°- 10° 10°- 20° 20°- 30°
    विषम राशि जागृत अवस्था स्वप्न अवस्था सुषुप्ति अवस्था
    सम राशि सुषुप्ति अवस्था स्वप्न अवस्था जागृत अवस्था

    ग्रह की जागृत अवस्था जातक को सुख प्रदान करती है और ग्रह पूर्ण फल देने में सक्षम होता है
    स्वप्न अवस्था का ग्रह मध्यम फल देता है
    सुषुप्ति अवस्था का ग्रह फल देने में निष्फलि माना जाता है।



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