गणेश चालीसा

श्री गणेश चालीसा


।।दोहा।।
मंगलमय गिरिजा-सुवन, प्रणवहुं बारम्बार।
विघ्न मंगल करन, कर भवसागर पार॥


।।चौपाई।।
लम्बोदर जय बाहु विशाल, कर कंकण मुक्तामणि माला।
मस्तक पर त्रिपूण्ड भाल सोहे, अंकुश धरा हाथ पर मोहे
नख द्युति दमके जैसे सिद्धी, बनी रहे दासी नित रिद्धी।
गजसम देह गाजानन भावें, मोदक कर में भोग लगावें।
चंवर डुलावे ऋद्धि सिद्धि प्रहरी, वाहन अनुपम मूषक लहरी।
नित उठि ध्यान धरै तिरलोकी, प्रथम पूज्य वन्दे सुरलोकी।
इच्छा भई उमा के भारी, पुत्र होय इक अति बलधारी।
शिव आदेश कर्यो तप भारी, होयगो निश्चय पुत्र सुखारी।
बहुत दिवस बीते तप कीन्हे, विष्णु प्रसन्न. होइ वर दीन्हे।
होइ पुत्र हरि का अवतारा, पूजनीय सुरगण का प्यारा।
एक दिवस जब शैलकुमारी, उबटन करि निज मैल उतारी।
सो उमेटि इक बाल बनायो, देखि देखि जिय अति हरषायो।
निज अंगली कर रक्त निकारा, एक बूंद शिशु के मुख डारा।
पीवा रक्त सजीव रूप धर, अरूण प्रभा सा चमका सुरवर।
जोरे हाथ दण्डवत कीन्हा, पारवती लगाइ उर लीन्हा।
सुरन दुन्दुभी दीन बजाई, शिव गद्गद् होइ गोद उठाई।
वह बालक अतुलित बलशीला, शिव संग कीन्हीं अति रणलीला
वेद व्यास जब राच्यो वेदा, करी दया खोल्यो सब भेदा
शारद नारद शीश नवार्वे, ब्रह्मादिक मुनि पार न पावें।
पंच देव महँ देव प्रथम ही, नाम लिये सब संकट कटही।
तुम्हारा तेज सकै को रोकी, पू्जे सब दिन प्रथम त्रिलोकी।
परशुराम जब रोश बढ़ायहु, धीरज दै गम्भीर बनायहु।
नाना विधि कर रूप बनाये, तीनी लोक सर्वस्व नचाये ।
जन्म तिथि चतुर्थी पुण्य की, भादों मास शुक्ल पक्ष की।
यह तिथि अतिशय पुण्य समाना, पूर्जे भक्तजन जानि प्रमाना।
श्री अक्षर ॐकार समाना, रामनाम गुण कीरति गाना।
सुर नर यागी भेद न जाना, पंचदेव में प्रथमे माना।
है प्रभु मोपर कीजै दाया, कोटि विघ्न छिनमाहिं नसाया।
बन्दहुँ नाथ जुगल कर जोरी, सुनि लीजै प्रभु अरजी मोरी।
ध्यान धरे जो कोई निशि दिन, दीजै बल विद्या धन सब दिन।
महिमा अकथ कहों का भाई, मूढ़ मती बुधि थोरी पाई।
जय जय जय शंकर जगदीशा, जय जय जय गणेश अवनीशा।
करि विश्वास जपै धरि श्रद्धा, कृष्ण चतुर्थी पूरे बरसा।
पजै विधिवत सब दिन नेमा, ताकर हरहिं कष्ट सब क्षण मा।
चन्द्रोदय प्रथमे करि दर्शन, पुनि प्रसाद बांटे तब भोजन।
गोरी तनय कथा मन लाई, प्रेम सहित पूजन करवाई।
कथा कीर्तन आदि सप्रेमा, पूजै सब दिन गणपति नेमा।
पुत्र होन कर इच्छा करही, गणपति कृपा अवशि फल लहही।
उद्यापन मण्डप करवावै, होइ मुक्त अमर पद पावै।
छूटे आवागमन कलेशा, जो पूजहिं गणपतिहिं हमेशा।

।।दोहा।।
श्रद्धा भक्ति समेत नित, जो पूजे चित लाय।
करे कृपा गिरिजा सुवन, कोटिन पाप नसाय॥


।। ॐ गं गणपतए नमः ।।

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