श्री सरस्वती चालीसा
श्री सरस्वती चालीसा
।।दोहा।।
विद्या का भण्डार है, बुद्धि की जड़ मात।
कारण दिव्य प्रकाश का, हरे अविद्या रात।।
।।चौपाई।।
मात सरस्वती वीणे वाली, योग मोक्ष दोनों की ताली।
नाम तेरे की ऊँची शान, मूक को दे संस्कृत का दान।
बालक जो गुण गावे तेरा, उसके कण्ठ करे श्रुति डेरा।
सेवक के संकट हर लेती, वांछित वर प्रकट हो देती।
वुःखहरणी शरणागत तेरी, नित्य भक्ति दे इच्छा मेरी।
योग मूल वी्णे पर राग, सुनो चंरंचलता चित की त्याग।
अनहद शब्द की वीणा शक्ति, जाप अपने की दे भक्ति।
स्वर वीणे से कटे उदासी, रसिकों को दे पद अविनाशी।
जड़ रोग की काटे वीणा, शोक रूधिर संग चाटे वीणा।
वीणे का स्वर प्रेम-स्वरूप, हरती भक्तों का भवकूप।
वृति उचाट की औषधि वीणा, कृष्ण कुंज का भूषण वीणा।
सरगम राग जब वीणा गाता, नन्दनन्दन नटवर बन जाता।
नारद रसिक भी वीणा धरते, प्रसन्नता से शिव विचरते।
सुरपुर के गन्धर्व भी चेले, तेरी पाठशाला में खेले।
होवें दीन न तेरे दास, नीति आद्य में निश्चय पास।
पूजा तेरी पुण्य फल देती, प्यासे पित्रों को जल देती।
लेख लिखे जीवों के तू ही, दुष्टों को दुर्गति दे तू ही।
भक्ति तेरी स्वर्ग निशानी, साक्षी निश्चय ईश्वरी बानी।
सेवा तेरी सब सुख मूल, स्वप्न में वेध सके नहीं शूल।
ममता जाल से सो नहीं छूटे, मूरख जो माता से रूठे।
जिसने आश्रय लिया तुम्हारा, प्रेम तत्त्व का पंथ सवारा।
कोटि तेतीस देव शरणागत, ऋषि मुनि सब करते स्वागत।
विव्य चक्षु दे पूर्ण दाती, घृणा करे उल्लुओं की जाती।
पशु सम नर जो विद्याविहीन, पा न सकें पदवी स्वाधीन।
सूर्य सहस न कटे अंधेरा, दिव्य प्रकाशी सेवक तेरा।
बांटे तू प्रारब्ध खजाना, भजे न हठ योगी अज्ञाना ।
बिगड़े अंक दूर कर देती, शंकर सम शीघ्र वर देती।
वाहन हँस का पावन ध्यान, परमहसं का देता ज्ञान।
दुर्भागी मोती नहीं चुगते, चुगने वाले रत्न भी चुगते।
एक हस्त जयमाला मैया के, दूसरे में खड़ताल मैया के।
अरु दो हस्त कमल वीणे पर, ध्याता को दे अजर अमर वर।
चतुर भुजा के बाजू बन्द, स्मरण से करते निर्द्न्द।
कानन कुण्डल रखते दिव्य ज्योती, आंख त्रिकालज्ञ दर्शी होती।
वाटिका तेरी में रहे मोर, पाप समूह के यह भी चोर।
कमल अष्टदल आसन तेरा, पूज्य विश्व प्रकाशन तेरा।
चरण तेरे मूर्त दिव्य धाम, लाखों तुमको हैं प्रणाम।
हरि समान हर घट में रहती, प्रेम पुष्प से पूजन चहती।
मंगल भुवन अमंगल हरण, आया हूँ माँ तेरी शरण।
मंत्र वर शुभी शारदा शरणम् आनन्द सागर भव भय हरणम्।
यह चालीसा जो जन गावे, सो जन वचन सिद्धि को पावे।
।।दोहा।।
सुनती सुत की मातृश्री, दिव्य काम के साथ।
मुख से आशीर्वाद दे, धरती सिर पर हाथ ॥
।। जय माँ सरस्वती ।।
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