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शिव नमस्कारथा मंत्र - Shiva Namaskartha Mantra

।। शिव नमस्कारथा मंत्र ।। ॐ हिरण्यबाहवे हिरण्यवर्णाय हिरण्यरूपाय हिरण्यापतए अंबिका पतए उमा पतए पशूपतए नमो नमः ईशान सर्वविद्यानाम् ईश्वर सर्व भूतानाम् ब्रह्मदीपते ब्रह्मनोदीपते ब्रह्मा शिवो अस्तु सदा शिवोहम तत्पुरुषाय विद्महे वागविशुद्धाय धिमहे तन्नो शिव प्रचोदयात् महादेवाय विद्महे रुद्रमुर्तए धिमहे तन्नो शिव प्रचोदयात् नमस्ते अस्तु भगवान विश्वेश्वराय महादेवाय त्र्यंबकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकाग्नी कालाय कालाग्नी रुद्राय नीलकंठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्वराय सदा शिवाय श्रीमान महादेवाय नम: श्रीमान महादेवाय नमः शांति शांति शांति

कालसर्प योग

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नमस्कार प्रिय पाठको 🙏 आज हम राहु केतु से बनने वाले कालसर्प योगों के बारे में जानेंगे। ज्योतिष शास्त्र अनुसार राहु और केतु के मध्य सारे ग्रह हो तो कालसर्प योग बनता है वहीं कुछ ज्योतिषाचार्य का मानना है के राहु और केतु के साथ या बाहर एक या दो ग्रह हो तो आंशिक कालसर्प योग बनता है जोकि कालसर्प योग के तुलना में आंशिक कालसर्प योग कम कष्ट कारक होता है। राहु और केतु दोनों ही छाया ग्रह है। ज्योतिष अनुसार इनके प्रभाव काफी कम होते हैं। राहु के जन्म के नक्षत्र के देवता यम यानी काल है और केतु के जन्म नक्षत्र अश्लेषा के देवता सर्प है। राहु के गुण और अवगुण शनि की तरह ही होते हैं। यही कारण है कि राहु शनि ग्रह के जैसे ही प्रभाव डालता है। किसी भी तरह का काल सर्प योग जो राहु से आरंभ हो रहा हो वह बहुत अधिक कष्टकारी होता है, किंतु केतु से लेकर राहु तक बनने वाला कालसर्प योग ज्यादा कष्टकारी नहीं होता यह सदैव ध्यान रखें। ग्रहों के गोचर के समय एक ऐसी स्थिति भी बनती है जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच होते हैं। मेष राशि से लेकर मीन राशि तक राहु सभी राशियों में लगभग 18 वर्षों में अपना गोचर पूर्ण कर ल

ग्रहों की संज्ञा Grahon ki Sangya

पारिवारिक संदर्भ में ग्रहों की व्याख्या :- सूर्य :- पिता चंद्रमा :- माता मंगल :- भाई बुध :- बहन बृहस्पति :- पुत्र/संतान, पति, पूर्वज शुक्र :- पत्नी शनि :- सेवक/नौकर-चाकर आत्मा, मन, बल, बुद्धि, सुख, कामना और दुःख के कारक ग्रह :- सूर्य :- आत्मा चंद्रमा :-  मन मंगल :- बल बुध :- बुद्धि बृहस्पति :-  सुख शुक्र :-  कामना शनि :-  दुःख ग्रहों को शारीरिक अंगों की संज्ञा :- सूर्य :-  हड्डी चंद्रमा :-  रक्त (शीघ्र गामी) मंगल :-  मांसपेशी बुध :-  त्वचा बृहस्पति :- वसा (चर्बी) शुक्र :-  वीर्य/शुक्राणु शनि :- स्नायु/नर्वस सिस्टम (मंंद गामी) ग्रहों की मूल त्रिकोण राशि :- कोई भी ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि में हो तो स्वराशि से अधिक शुभ फल देते हैं। ग्रह राशि अंश सूर्य सिंह ०१-२० अंश तक चंद्रमा वृषभ ०४-१० अंश तक मंगल मेष ०१-१८ अंश तक बुध कन्या १६-२० अंश तक बृहस्पति धनु ०१-१३ अंश तक शुक्र तुला ०१-१० अंश तक शनि मकर ०१-२० अंश तक राहु कर्क १५-२५ अंश तक केतु मकर १५-२५ अंश तक चंद्रमा को छोड़कर सभी ग्रह अपनी ही राशि में मूल त्रिकोण होते है।

ग्रहों का तत्व Grahon ka Tatva

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ग्रहों के तत्व विभाजन :- पृथ्वी तत्व :-  बुध जल तत्व :-   शुक्र  अग्नि तत्व  :-  मंगल आकाश तत्व :- बृहस्पति  वायु तत्व :- शनि इन पांच ग्रहों को पांच तत्वों में विभाजित किया गया है। सूर्य और चंद्रमा ये ग्रह अग्नि और जल के प्रधान अधिपति है-- सूर्य :-   संसार में जितने भी प्रकार की अग्नि चाहे इंधन के द्वारा अग्नि बिजली से प्राप्त अग्नि सभी अभी अग्नि के अधिपति सूर्य हैं मंगल भी अग्नि के कारक है पर इनके पास वैकल्पिक व्यवस्था है जैसे चोट लगे दुर्घटना व आगजनी हो जाए तो मंगल को देखा जाता है। चंद्रमा :- कहते हैं कि संसार में और आपके शरीर में जितने भी जल है सब के अधिपति मात्र चंद्रमा शुक्र नहीं लेकिन जल के कारक शुक्र भी कहे गए हैं संपूर्ण जल के अधिपति नदी की बात होना ले समुंदर बरसात के पानी आंसू सब के अधिपति प्रधान रूप से चंद्रमा है तो यहां पर शुक्र को वैकल्पिक व्यवस्था में रखा गया जैसे जल को बांध बनाकर रोका गया पानी पीने के लिए पानी जलापूर्ति सिंचाई के लिए जो मानव द्वारा परिवर्तित किया जाए उसके गुणों को प्रकृति ऐसी व्यवस्थाओं के लिए शुक्र को देखा जाता है। ग्रहों का लिंगात

राशि के चिन्ह और पद

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नमस्कार प्रिय पाठकों 🙏 वैदिक ज्योतिष में १२ राशियों को उनके चिन्ह (आकृतियां) दी गई है। इन्हीं आकृति द्वारा राशियों के स्वभाव को भी जाना जाता है। राशि के चिन्ह और पद :- राशि आकृति पद मेष भेड़ की आकृति है चतुष्पद वृषभ बैल की आकृति है चतुष्पद मिथुन स्त्री पुरुष का जोड़ा स्त्री के हाथ में वीणा और पुरुष के हाथ में गदा है (पराशर के अनुसार) द्विपद कर्क केकड़ा की आकृति है बहुपद सिंह शेर की आकृति है तुष्पद कन्या नाव पर बैठी कन्या और उसके एक हाथ में लालटेन है और दूसरे हाथ में अन्न है (धान या गेहूं) है (शास्त्रानुसार) द्विपद तुला पुरुष के हाथ में तराजू (शास्त्रानुसार) द्विपद वृश्चिक बिच्छू की आकृति है बहुपद धनु अगला हिस्सा मनुष्य और पिछला हिस्सा घोड़े का और हाथ में धनुष ताने हुए है  द्विपद चतुष्पद मकर अगला हिस्सा हिरण का पिछला हिस्सा मगरमच्छ का है चतुष्पद कुंभ पुरुष के सिर के ऊपर घड़ा है और घड़ा कहीं न कहीं फटा है और घड़े का सारा जल पुरुष के कपड़े को गिला करता हुआ निकल जाता है  अपद या विपद मीन दो मछलियों का जोड़ा है और

राशियों और ग्रहों कि दिशाएं Rashi Aur Grah ki Disha

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नमस्कार प्रिय पाठको 🙏 आज हम राशियों के दिशाओं के बारे में जानेंगे :- ज्योतिष शास्त्र में राशियों को दिशाओं की संज्ञा दी गई है दिशा में राशियों का क्या महत्व है किस राशि से किस दिशा की बात होती है। किन किन राशियों को किन किन दिशाओं की संज्ञा प्राप्त है। किन राशियों का किस दिशाओं में निवास स्थान है। ज्योतिष में भी इसका बहुत महत्व है फलित ज्योतिष में भी यह काम आता है और मुहूर्त ज्योतिष में भी इसका बहुत महत्व है। वास्तु शास्त्र में राशियों कि दिशा अत्याधिक महत्वपूर्ण है। फलित सिद्धांत में दिशाओं के सम्बन्ध में जितने भी प्रश्न है उनके लिए राशि ओर ग्रहों कि दिशाओं का ज्ञान होना अतिआवश्यक है। दिशाओं के स्वामित्व राशियां :-- पूर्व दिशा :-   मेष, सिंह और धनु यह अग्नि तत्व की राशियां है। इन्हें पूर्व दिशा का स्वामित्व प्राप्त है। दक्षिण दिशा :- वृषभ, कन्या और मकर यह पृथ्वी तत्व की राशियां है। इन्हें दक्षिण दिशा का स्वामित्व प्राप्त है। पश्चिम दिशा :- मिथुन, तुला और कुम्भ यह वायु तत्व की राशियां है। इन्हें पश्चिम दिशा का स्वामित्व प्राप्त है। उत्तर दिशा :- कर्क, वृश्चिक और मीन यह

राशियों और ग्रहों के गुण स्वभाव Rashiyo Aur Graho ke Gun Swabhav

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प्रिय पाठकों नमस्कार 🙏 आज हम राशियों की दिशा और उनके 3 गुण के बारे में जानेंगे ज्योतिष शास्त्र में राशियों को गुण भी बताए गए है। तीन गुण :- १. सतोगुण २. रजोगुण ३. तमोगुण राशियों के गुण :- सतोगुण :-   कर्क, सिंंह, धनु और मीन रजोगुण :-   मेष, वृृश्चिक, वृषभ और तुला तमोगुण :-   मिथुन, कन्या, मकर और कुंभ वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के भी गुण स्वरूप है:- सतोगुण :-  सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति रजोगुण :-  बुध और शुक्र तमोगुण :-  मंगल और शनि ग्रहों के गुण के लिए ग्रह कुंडली के जिस भाव में बैठे है उस भाव सम्बंधित गुणों को देखा जाता है अर्थात यदि कोई ग्रह पिता के भाव में है तो उस ग्रह सम्बंधित गुणों से पिता के गुण स्वरूप की विवेचना यदि कोई ग्रह पत्नी के भाव में है तो उस ग्रह सम्बंधित गुणों से पत्नी के गुण स्वरूप की व्याख्या की जाती है सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण के जातक का स्वभाव :- सतोगुण  :- जो सत्य के निकट रहते हैं जो इस भाव में अधिक रहते हैं कि यह सब छोड़ कर जाना है क्या व्यर्थ की भागदौड़ में अधिक मरना सच्चे छल कपट कम शीघ्र झुकते नहीं सबसे निफ्टी नहीं बहुत संवेदनशील हो सकते हैं

श्री विष्णु चालीसा

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श्री विष्णु चालीसा ।।दोहा।। जय-जय-जय श्री जगतपति, जगदाधार अनन्त। वश्वेश्वर अखिलेश अज, सर्वेश्वर भगवन्त॥ ।।चौपाई।। जय-जय धरणीधर श्रुति सागर, जयति गदाधार सद्गुण आगर। श्री वसुदेव देवकी नन्दन, वासुदेव नासन भव फन्दन। नमो नमो त्रिभुवन पति ईश, कमलापति केशव योगीशं। नमो-नमो सचराचर स्वामी, परमब्रह्य प्रभु नमो नमामी। गरूड़ध्वज अज, भव भयहारी, मुरलीधर हरि मदनमुरारी। नारायण श्री पति पुरूषोत्तम, पदम् नाभि नर-हरि सर्वोतम। जय माधव मुकुन्द वन माली, खलदल मर्दन, दमन-कुचाली। जय अगणित इन्द्रिय सारंगधर, विश्वरूप वामन आनन्द कर। जय जय लोकाध्यक्ष धनञ्जय, सहस्त्राक्ष जगनाथ जयति जय। जय मधुसूदन, अनुपम आनन, जयति वायु वाहन ब्रजकानन। जय गोविन्द, जर्नादन देवा, शुभ फललहत, गृहत तव सेवा। श्याम सरोरूह सम तन सोहत, दरस करत सुरनर मुनि मोहत। भाल विशाल मुकुट शिर साजत, उर बैजन्ती माल बिराजत। तिरछी भृकुटि चाप जनुधारें, तिनतर नयन कमल अरुणारे। नाशा चिबुक कपोल मनोहर, मृदु मुसकान चक्षु अधरन पर। जनमणि-पंक्ति, दर्शन मनभावन, वसन पीत तन परम सुहावन। रूप चतुर्भुज भूषित भूषण, वरद हस्त मोचन भवदूषण। कञ्जारुण सम करतल सुन्दर, सुख स
ग्रहों के तत्व

राशि और ग्रहों का वर्णात्मक विभाजन Rashi Aur Grahon Ka Varnatmak Vibhajan

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प्रिय पाठकों नमस्कार 🙏 आज हम राशियों का वर्णनात्मक विभाजन के बारे में जानेंगे--- किसी भी जातक के स्वभाव के बारे में जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र में वर्णों का भी विचार किया जाता है इससे जातक का स्वभाव कैसा है यह हमें कुछ हद तक पता चल जाता है। जैसे की हम सभी जानते हैं वर्ण चार होते हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । ज्योतिष शास्त्र में १२ राशियों को इन्हीं चार वर्णों में विभाजित किया है जो इस प्रकार है। राशियों का वार्णात्मक विभाजन :- ब्राह्मण वर्ण कर्क, वृश्चिक और मीन ये सभी सम राशि है यह सौम्य और स्त्री प्रधान राशि मानी गई है। यह जल तत्व की राशियां है क्षत्रिय वर्ण मेष, सिंह और धनु यह सभी विषम राशियां है यह क्रूर और पुरुष प्रधान राशिया है। यह अग्नि तत्व की राशियां है वैश्य वर्ण वृषभ, कन्या और मकर ये सब राशि सम राशि है तथा सौम्य और स्त्री प्रधान राशि है। यह पृथ्वी तत्व की राशियां है। शूद्र वर्ण मिथुन, तुला और कुम्भ यह सभी विषम राशियां है यह क्रूर और पुरुष प्रधान राशिया है। यह वायु तत्व की राशियां है। जिस ज